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ग्वालियरः एक हजार बिस्तरों वाले अस्पताल के निर्माण की गुणवत्ता पर उठ रहे सवाल

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Sep 16, 2019

धर्मेन्द्र शर्मा - ग्वालियर की बहुप्रतीक्षित एक हजार बिस्तरों वाले अस्पताल के निर्माण की गुणवत्ता पर अब सरकार के ही एक विधायक ने सवाल उठाए हैं। ग्वालियर दक्षिण से कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने कहा है कि निर्माण कार्य में गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखा जा रहा है। पीआईयू द्वारा बनाए जा रहे इस करोड़ों रुपए के अस्पताल की गुणवत्ता पर सवाल उठने पर भाजपा ने भी चुटकी ली है और कहा है कि जिस तरह से पूरे परिसर को कवर करके निर्माण कराया जा रहा है, उससे लगता है कि दाल में कहीं कुछ काला है।

विधायक प्रवीण पाठक ने निर्माण सामग्री के सैंपल कलेक्ट कर जांच के लिए भेजे

दरअसल भाजपा शासन में शुरू हुए इस 1000 बिस्तर के अस्पताल का निर्माण काफी दिनों से चल रहा है। सबसे खास बात यह है कि इस पूरे निर्माण कार्य के दौरान निर्माण करने वाली कंपनी ने 1000 बिस्तर के पूरे अस्पताल के परिसर में किसी के भी आवाजाही पर रोक लगा रखी है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो बिना ठेकेदार की परमिशन के इस पूरे परिसर में परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। अगर कोई गलती से घुस आता है तो अस्पताल की साइट पर तैनात निजी सिक्योरिटी गार्ड और बाउंसर सरकारी अमले के अलावा किसी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं देते हैं। यहां तक कि मीडिया की कवरेज तक पर पाबंदी लगी हुई है। ऐसे में नई कमलनाथ सरकार के ही विधायक प्रवीण पाठक ने गुपचुप तरीके से चल रहे 1000 बिस्तर के अस्पताल के निर्माण कार्य पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं और निर्माण में इस्तेमाल करने वाले सामान के सैंपल तक कलेक्ट कर जांच के लिए भेजे हैं। साथ ही प्रदेश सरकार और सरकार में बैठे अधिकारियों को भी इस जानकारी से अवगत कराया है।

भाजपा भी मान रही है कि दाल में कुछ काला है

दूसरी तरफ भाजपा के नेता भी निर्माण कर रही कंपनी की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। उनका भी कहना है कि जब लोगों की नजरों से बचाकर कोई काम किया जा रहा है तो निश्चित ही कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला है। इस अस्पताल का भूमि पूजन 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया था। इसके बाद से पूरा मामला केवल कागजों में ही चल रहा था, लेकिन सरकार बदलते ही इसका काम भी शुरू हो गया है। दिलचस्प बात ये है कि इसके लिए सबसे पहले 116 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था, जबकि अब लागत बढ़कर करीब 265 करोड़ से ज्यादा तक पहुंच गई है। ऐसे में निर्माण में घटिया सामग्री के उपयोग की बात सामने आने से कहीं ना कहीं पूरे काम की मॉनिटरिंग कर रही सरकारी कंपनी पीआईयू के अधिकारियों के निरीक्षण पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।