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स्टार महिला बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल कभी थी कराटे की ब्लैक बेल्ट चैंपियन

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Mar 17, 2020

भारत की स्टार महिला बैडमिंटन खिलाड़ी और ओलंपिक पदक विजेता साइना नेहवाल का आज जन्मदिन है। वह आज यानी मंगलवार को 29 साल की हो गईं। 17 मार्च 1990 को हरियाणा के हिसार में जन्मीं साइना देश की पहली और एकमात्र ऐसी खिलाड़ी हैं जो बैडमिंटन में वर्ल्ड नंबर वन प्लेयर भी रही हैं, लेकिन बचपन में साइनाका पहला प्यार बैडमिंटन नहीं, बल्कि कराटे था। साइना कराटे में ब्लैक बेल्ट चैंपियन भी हैं, लेकिन समय के साथ-साथ कराटे छोड़ बैडमिंटन खेलना शुरू किया और आज देश की स्टार बैडमिंटन में वह शुमार हैं।

राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड, अर्जुन अवॉर्ड और पद्म भूषण से हैं सम्मानित

जानकारी के लिए बता दें कि साइना नेहवाल साल 2012 में लंदन ओलंपिक में कांस्य जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बनीं। इसके बाद उन्होंने वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर वन पायदान पर कब्जा किया। साइना देश की एक ऐसी खिलाड़ी है जिसने अब तक कई टूर्नामेंट में देश के लिए गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकी हैं। इसके साथ-साथ वह कॉमनवेल्थ वूवेन सिंगल गोल्ड, सुपर सीरीज टाइटल, वर्ल्ड जूनियर और कॉमनवेल्थ युथ टाइटल का खिताब अपने नाम कर चुकी हैं। इस कामयाबी के चलते उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड, अर्जुन अवॉर्ड और पद्म भूषण का सम्मान भी मिल चुका है।

16 साल की उम्र में जीती थी राष्ट्रीय अंडर-19 चैंपियनशिप

दरअसल, साइना नेहवाल का फैमिली बैकग्राउंड हरियाणा का है लेकिन बाद में वे लोग हैदराबाद जाकर बस गये। उनके पिता एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में पोस्टेड थे। जब उनका प्रमोशन हुआ तो पांच शहरों में ट्रांसफर का ऑफर आया, जिसके बाद उन्होंने हैदराबाद को सेलेक्ट किया और उनकी पूरी फैमिली हैदराबाद शिफ्ट हो गई। साइना नेहवाल साल 2006 में पहली बार चर्चा में आईं, जब 16 साल की उम्र में उन्होंने राष्ट्रीय अंडर-19 चैंपियनशिप जीती। इसके अलावा इतिहास रचते हुए एक बार नहीं बल्कि दो बार एशियाई सेटेलाइट चैंपियनशिप जीती। उसी साल वांग यिहान के हाथों वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप के फाइनल में हारते हुए वें दूसरी स्थान पर रहीं।

घर से 25 किलोमीटर दूर स्टेडियम जाना पड़ता था प्रैक्टिस के लिए

साइना नेहवाल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब मैं 8 वर्ष की थी और मुझे प्रैक्टिस के लिए घर से 25 किलोमीटर दूर स्टेडियम जाना पड़ता था। इसके लिए मुझे सुबह चार बजे उठना पड़ता था। मेरे पिता मुझे स्कूटर से स्टेडियम ले जाते। दो घंटे वे भी वहीं रहते थे और मेरा खेल देखते। फिर वहीं से मुझे स्कूल छोड़ते। सुबह जल्दी उठने की वजह से मुझे कई बार नींद भी आ जाती थी। कही गिर न पड़ूं, इसलिए मेरी मां भी साथ आती थीं। पिता स्कूटर चलाते और मां मुझे पकड़कर बैठतीं। रोजाना करीब 50 किलोमीटर का सफर आसान नहीं था, लेकिन यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा।