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हरछठ पूजा: विंध्य की अनूठी परंपरा, प्रकृति संरक्षण का पर्व

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Aug 14, 2025

हरछठ पूजा: विंध्य की अनूठी परंपरा, प्रकृति संरक्षण का पर्व

हरछठ पूजा मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र का एक विशेष त्योहार है, जो भाद्रपद माह की छठवीं तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है। 14 अगस्त 2025 को मनाया गया यह व्रत मातृत्व की आराधना के साथ-साथ प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और संरक्षण का प्रतीक है। जंगलों से प्राप्त सामग्री के साथ होने वाली यह पूजा पर्यावरण चेतना और परंपरागत जीवनशैली का अद्भुत संगम है। इसे हलषष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

व्रत की तैयारी और सामग्री

विंध्य क्षेत्र की महिलाएं सालभर हरछठ व्रत की तैयारी करती हैं। पूजा के लिए कांस के फूल, महुआ और पलाश के पत्ते, बेर की डालियां, मिट्टी की चुकरियां और बांस की टोकरियां जंगलों से एकत्र की जाती हैं। बाजारों में इन सामग्रियों की रौनक रहती है। यह सामग्री प्रकृति से सीधा जुड़ाव दर्शाती है, जो इस पर्व को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ती है।

पूजा विधि और प्रसाद

हरछठ व्रत में सुबह स्नान के बाद शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। दोपहर में सामूहिक पूजा होती है, जिसमें भैंस का दूध, दही, घी, पसही का चावल, महुआ के फूल और जंगली पड़ोरा की सब्जी से प्रसाद तैयार किया जाता है। व्रती महिलाएं पूरे दिन केवल यही प्रसाद ग्रहण करती हैं। हल से जुताई वाली फसल का उपयोग वर्जित है।

प्रकृति संरक्षण का संदेश

हरछठ केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण का संदेश भी देता है। यह जंगली पौधों, पसही चावल और कांस घास जैसे प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को उजागर करता है। भगवान बलराम की पूजा के साथ यह त्योहार पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाता है।

 

Report By:
Monika