Nov 6, 2025
जगन्नाथ पुरी धाम की रहस्यमयी रसोई: जहां सात बर्तनों में पकता महाप्रसाद और कभी कम नहीं पड़ता भोजन
ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ धाम न केवल अपनी भव्यता और परंपरा के लिए, बल्कि अपनी चमत्कारी रसोई के लिए भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहां रोजाना लाखों लोगों के लिए भोजन बनता है, फिर भी कभी भोजन कम नहीं पड़ता। सात मिट्टी के बर्तनों में पकने वाला महाप्रसाद और प्रसाद ग्रहण करने की अनोखी परंपराएं इस धाम को और भी अद्भुत बनाती हैं।
जगन्नाथ धाम की अद्भुत परंपरा
चारधामों में से एक भगवान जगन्नाथ का यह धाम श्रद्धा और रहस्य का अद्भुत संगम है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पूजा होती है। मंदिर की सबसे विशेष बात इसकी रसोई है, जो दुनिया की सबसे बड़ी रसोइयों में गिनी जाती है। हर दिन यहां हजारों पुजारी और सेवक भगवान के लिए भोग तैयार करते हैं, जिसे बाद में भक्तों में महाप्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
सात मिट्टी के बर्तनों का चमत्कार
मंदिर की रसोई में भोजन पकाने का तरीका अपने आप में अनोखा है। यहां सात मिट्टी के बर्तन एक के ऊपर एक रखे जाते हैं और सभी में एक साथ खाना पकता है। आश्चर्य की बात यह है कि सबसे ऊपर रखा बर्तन सबसे पहले पकता है और नीचे वाला अंत में। भक्त इसे भगवान की दिव्य शक्ति का चमत्कार मानते हैं।
कभी नहीं होता भोजन कम
माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई में न तो कभी भोजन कम पड़ता है और न ही प्रसाद बचता है। चाहे भीड़ कितनी भी हो, हर भक्त को प्रसाद मिल ही जाता है। इसे भगवान की कृपा का प्रत्यक्ष प्रमाण माना जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी वैसी ही जीवित है।
महाप्रसाद ग्रहण करने की अनोखी परंपरा
पुरी धाम में महाप्रसाद ग्रहण करते समय अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे के साथ पत्तल साझा करता है, तो उसे अशुद्ध नहीं माना जाता। यहां तक कि यदि कोई कुत्ता या बिल्ली भी प्रसाद ग्रहण करने आ जाए, तो उसे भगाया नहीं जाता। सभी को समान रूप से भगवान का प्रसाद ग्रहण करने का अधिकार है।
भक्ति और सेवा का प्रतीक है यह रसोई
जगन्नाथ धाम की यह रसोई केवल भोजन बनाने का स्थान नहीं, बल्कि भक्ति, सेवा और समर्पण की मिसाल है। यहां बनने वाला भोजन न केवल शरीर को तृप्त करता है, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है। यही कारण है कि पुरी का महाप्रसाद हर भक्त के लिए आस्था का प्रसाद बन चुका है।







