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रघुराम राजन को पढ़ा चुके पूर्व IIT प्रोफेसर अलोक सागर, अब कर रहे हैं ग़रीब आदिवासियों की सेवा

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Sep 16, 2016

बैतूल। वो चाहते तो अपनी पूरी जिंदगी ऐशो आराम से बिता सकते थे लेकिन उन्होंने सबकुछ छोड़कर ऐसे इलाके की तरफ रूख किया जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा। भारत के सर्वोच्च तकनीकी संस्थान आईआईटी में पढ़ने के बाद यूएसए में जाकर पीएचडी करना और वहाँ दो साल नौकरी करने के बाद वापस आईआईटी में आकर बच्चों को शिक्षा देना। फिर एक दिन सबकुछ छोड़कर अपना पूरा जीवन आदिवासी समाज को शिक्षित करने में लगा देना। आलोक सागर मध्य प्रदेश में बैतूल जिले के घोडाडोंगरी विधानसभा उपचुनाव के समय सुर्खियों में तब आए जब उन्हें पुलिस ने वैरीफिकेशन के लिए थाने बुलाया। उनका वैरीफिकेशन देखकर सबके होश उड़ गए।

आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग

नई दिल्ली निवासी आलोक सागर ने आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। 1973 में यहीं से मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद वह पीएचडी करने के लिए टेक्सास की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी चले गए। भारत लौटने से पहले उन्होंने दो साल तक यूएस में नौकरी भी की। 1980.81 में वापस भारत आकर दिल्ली आईआईटी में एक साल पढ़ाया। यहाँ आलोक ने अनेकों छात्रों को पढ़ाया। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन उनमें से एक हैं। वहां से इस्तीफा देने के बाद आलोक ने मध्य प्रदेश के बैतूल और होशंगाबाद जिले में रहने वाले आदिवासियों के लिए काम करना शुरू किया। पिछले 26 सालों से आलोक आदिवासी बहुल गांव कोचामू में रह रहे हैं। करीब 750 की आबादी वाले इस गांव में बस एक प्राइमरी स्कूल है। इसके अलावा यहां ना तो बिजली है और ना ही सड़कें।

आदिवासी बच्चों को पढ़ाना और पौधों की देखरेख करना उनकी दिनचर्या

आलोक ने इस इलाके में 50 हजार से ज्यादा पौधे लगाए। उनका मानना है कि देश की सेवा करने के लिए हमें जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। आलोक ने कहा भारत में लोग कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। मगर हर कोई डिग्री दिखाकर अपनी योग्यता साबित करने में लगा है, ना कि लोगों की सेवा करने में। आदिवासी बच्चों को पढ़ाना और पौधों की देखरेख करना उनकी दिनचर्या में शामिल है। पैरों में रबड़ की चप्पलें, हाथ में झोला, उलझे हुए बाल, कोई कह ही नहीं सकता कि ये वही व्यक्ति है जिसे अंग्रेजी सहित कई विदेशी भाषाएं आतीं हैं।

ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी से पीएचडी

दिल्ली आईआईटी से 1966-71 के बीटेक किया । जिसके बाद 1971-73 तक एमटेक करने के बाद राइस विश्वविद्यालय ह्यूस्टन में पीएचडी पूरी की । पीएचडी के बाद आलोक सागर ने अमेरिका में नौकरी भी की। 1980-81 में दिल्ली आईआईटी में आलोक सागर ने एक प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाया भी। आलोक सागर कई भाषाओं के जानकार भी हैं । इस बात की जानकारी तब मिली जब वो स्थानीय आदिवासियों से उन्हीं की भाषा में संवाद स्थापित कर रहे थे ।

90 के दशक में मध्यप्रदेश आए

आलोक सागर का सपना है कि समाज में फैली गै़रबराबरी ख़त्म होनी चाहिए। 90 के दशक में वो आदिवासी श्रमिक संगठन के अपने साथियों के ज़रिए मध्य प्रदेश आए। लेकिन वो दिन था और आज का दिनए आलोक ने इस ज़मीन को ही अपनी कर्मभूमि मान लिया। उनके पास जमापूंजी के नाम पर 3 जोड़ी कुर्ते और एक साइकिल है।

उन्होंने सरकार की योजनाओं पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार कहती हैं कि आदिवासियों के लिए कई योजनाओं को चलाया जा रहा है लेकिन हक़ीकत में वो योजनाएं कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं और ना ही उनका फायदा स्थानीय आदिवासियों को मिल पा रहा है। बहरहाल आलोक के पास कई सवाल हैं और इनमें से एक यह भी सवाल है कि आख़िर कब तक आदिवासियों का शोषण एक योजनाबद्ध तरीके से होता रहेगा।