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शर्म अल-शेख में गाजा शांति का महासंग्राम: मोदी-ट्रंप मुलाकात की उम्मीद, भारत की भूमिका बनेगी गेम चेंजर?

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Oct 12, 2025

शर्म अल-शेख में गाजा शांति का महासंग्राम: मोदी-ट्रंप मुलाकात की उम्मीद, भारत की भूमिका बनेगी गेम चेंजर?

मिस्र के खूबसूरत रिसॉर्ट शहर शर्म अल-शेख में 13 अक्टूबर को होने वाले गाजा शांति शिखर सम्मेलन ने दुनिया को चौंका दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी की संयुक्त अध्यक्षता में यह ऐतिहासिक आयोजन 20 से अधिक देशों के नेताओं को एक मंच पर लाएगा। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्रंप और अल-सीसी ने विशेष न्योता दिया है, जिससे दिल्ली-वाशिंगटन के बीच नई गर्मजोशी की उम्मीदें जग गई हैं। लेकिन पीएमओ की चुप्पी ने सस्पेंस बढ़ा दिया है—क्या मोदी मिस्र पहुंचेंगे? यह समिट न सिर्फ गाजा युद्ध को खत्म करने का वादा करता है, बल्कि मध्य पूर्व की सियासत को नया मोड़ दे सकता है। आइए, इस रोमांचक ड्रामे की परतें खोलें।

मोदी को न्योता: ट्रंप से हाथ मिलाने का सुनहरा मौका

ट्रंप के 20-सूत्री प्लान ने इजरायल-हमास संघर्ष को विराम दिया है, और अब शर्म अल-शेख में हस्ताक्षर होंगे। मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी ने मोदी को फोन पर आमंत्रित किया, जबकि ट्रंप ने इसे 'शांति की नई सुबह' बताया। अगर मोदी जाते हैं, तो यह उनकी मिस्र यात्रा का पहला पड़ाव होगा, जहां ट्रंप से द्विपक्षीय बातें होंगी—व्यापार से लेकर आतंकवाद तक। लेकिन विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह पहले ही भारत का प्रतिनिधित्व करने को तैयार हैं। पीएमओ की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा है दुनिया, क्योंकि मोदी की मौजूदगी भारत को शांति प्रक्रिया का सेंटरस्टेज बना सकती है। सोचिए, लाल सागर के किनारे ट्रंप-मोदी की सेल्फी वायरल हो जाए!

गाजा शांति प्लान: ट्रंप का जादुई 20-सूत्री फॉर्मूला

दो साल के खूनी संघर्ष के बाद, ट्रंप का प्लान चमत्कारिक लगता है। इसमें तत्काल युद्धविराम, इजरायली सेना की आंशिक वापसी, बंधकों-कैदियों की अदला-बदली और गाजा में मानवीय सहायता का वादा है। 67,000 से ज्यादा फिलिस्तीनियों की मौत के बाद यह समझौता उम्मीद की किरण है। लेकिन चुनौतियां कम नहीं—हमास ने इसे 'बेतुका' ठहराया, कहा कि वे हथियार नहीं छोड़ेंगे। इजरायली पीएम नेतन्याहू भी शर्तें रख रहे हैं, चाहते हैं हमास पूरी तरह ढेर हो। ट्रंप का दावा है, 'यह मध्य पूर्व का नया युग है।' समिट में यूके, फ्रांस, जॉर्डन जैसे देश शामिल होंगे, लेकिन इजरायल की अनुपस्थिति सवाल खड़ी कर रही है। क्या यह शांति टिकेगी, या फिर नया तूफान?

भारत की स्मार्ट डिप्लोमेसी: शांति का ब्रिज

भारत ने हमेशा संतुलन की नीति अपनाई—इजरायल से रक्षा साझेदारी, फिलिस्तीन से ऐतिहासिक दोस्ती। यह समिट भारत को मध्य पूर्व में मजबूत पोजीशन देगा, खासकर तेल और सुरक्षा के मुद्दों पर। अगर मोदी जाते हैं, तो यह फिलिस्तीनी कारण को समर्थन देने का संदेश होगा। लेकिन न जाने पर भी, कीर्तिवर्धन सिंह की मौजूदगी भारत की प्रतिबद्धता दिखाएगी। वैश्विक मंच पर भारत की यह चाल न सिर्फ शांति को बढ़ावा देगी, बल्कि ट्रंप के साथ रिश्तों को नई ऊंचाई भी। कुल मिलाकर, शर्म अल-शेख की यह शाम इतिहास रच सकती है—शांति की, या फिर सियासी साजिशों की?

Report By:
Monika