Nov 4, 2025
चौगान की ऐतिहासिक मड़ई: आस्था, परंपरा और आदिवासी संस्कृति का अनोखा संगम
अमित चौरसिया, संवाददाता मण्डला : मध्य प्रदेश के मंडला जिले में स्थित चौगान गांव की वार्षिक मड़ई एक जीवंत सांस्कृतिक उत्सव है, जो आदिवासी समाज की गहरी आस्था और लोक परंपराओं को दर्शाता है। रविवार को आयोजित इस ऐतिहासिक आयोजन में नर्मदा नदी के किनारे सैकड़ों श्रद्धालु विविध वेशभूषा और धार्मिक जोश के साथ एकत्र हुए। मंडला जिला मुख्यालय से मात्र 20 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत चौगान में हुई यह मड़ई न केवल स्थानीय ग्रामीणों का तीर्थस्थल है, बल्कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और गुजरात जैसे राज्यों से आदिवासी समुदायों को आकर्षित करती है। यह उत्सव फसल कटाई का प्रतीक होने के साथ-साथ शुभ कार्यों की शुरुआत का संकेत भी देता है, जो सदियों पुरानी लोकसंस्कृति की अमिट छाप छोड़ता है।
उत्सव का भव्य स्वरूप
मड़ई का आरंभ परंपरागत संगीत, नृत्य और चंडी पूजन से हुआ। आसपास के ग्रामीण अंचलों से पहुंचे लोग मुख्यतः सफेद वस्त्रों में सज-धजकर शामिल हुए, जबकि बाहरी दर्शक रंग-बिरंगे परिधानों से उत्सव को और जीवंत बना देते हैं। विधिवत पूजन के बाद ग्रामीण चंडी लेकर मैदान की ओर बढ़े, जहां आगे-आगे सशस्त्र पुलिस जवान सुरक्षा व्यवस्था संभालते नजर आए। हजारों ग्रामवासी इस दृश्य से मंत्रमुग्ध हो गए, और कईयों ने मोबाइल कैमरों में इसे संजो लिया। विशेष रूप से अहीर समुदाय के सदस्यों ने सिर पर 'नकचुंडा' यानी तोते की आकृति धारण की, जो करीब 50 वर्ष पूर्व मढ़िया में चढ़ाई गई थी और बाद में यादव समुदाय को दान कर दी गई। यह प्रतीक हर वर्ष श्रद्धा के साथ अपनाया जाता है, जो उत्सव की सांस्कृतिक गहराई को उजागर करता है।
आस्था और सामाजिक महत्व
आदिवासी समाज के लिए चौगान का यह तीर्थस्थल अत्यंत पवित्र है, जहां मड़ई के बाद विवाह, शादी-ब्याह जैसे शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। चंडी लेकर पहुंचे राजीव कूड़ापे ने बताया, "हम पूरे दिन उपवास रखते हैं और मोर पंख से सजी चंडी की पूजा करते हैं, जो प्रकृति का स्वरूप मानी जाती है। फिर पांच दुकानों पर भीख मांगकर ही जल ग्रहण करते हैं।" यह परंपरा समानता और विनम्रता सिखाती है, चाहे व्यक्ति कितना भी बड़ा अधिकारी हो। मड़ई गोण्ड और बैगा जनजातियों की फसल उत्सव के रूप में जानी जाती है, जो सामुदायिक एकता को मजबूत करती है। इस आयोजन ने एक बार फिर साबित किया कि मध्य प्रदेश की आदिवासी संस्कृति कितनी जीवंत और प्रासंगिक है, जो पर्यटन को भी बढ़ावा दे रही है।
चौगान की मड़ई न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी। यह उत्सव पर्यावरण संरक्षण, सामुदायिक सहभागिता और लोक कला को प्रोत्साहित करता है। भविष्य में ऐसे आयोजनों से आदिवासी विरासत को वैश्विक पटल पर उभारा जा सकता है।








